Thursday, December 25, 2008

श्वानयुक्त श्रीखंड

हाटकेश्वर उत्सव में छाया था उत्साह चारो ओर जी,
वशेक के तेडे करने निकले थे सारे गोरजी l
वशेक था देहरे पर,
‘रणछोडजी’ थे पहरे पर l
भोजनशाला में बना था बड़ा स्वादिष्ठ नवेद जी,
भरा था तपेले में श्रीखंड, मीठा और सफ़ेद जी l
न जाने अचानक आ गया एक श्वान,
बन के बिन बुलाया मेहमान l
'अनंग' की तरह से लिया लंबा रन अप,
‘पाला’ समझ लगाई श्रीखंड मे जम्प l
देख कर यह नज़ारा ‘मानेकजी’ के उखड़े प्राण जी,
मचा हड़कंप, जैसे आया तूफ़ान जी l
आया ‘बंसी’, बोला, अब मै क्या खाऊँगा !
एक हफ्ते से डाइट प्लान पर हूँ !!
सोचा था श्रीखंड कटोरी खूब दबाऊंगा l
कुत्ते को निकाला, नहलाया,
खूब 'धोया' l
दे डाला उसे श्राप जी,
नही पचेगा तुझे ये श्रीखंड, हो जाएगा हैरान जी,
‘रुचिर’ की भी दवा आयेगी न तेरे काम जी l
कुत्ता बोला, माँ अन्नपुर्णा का है आशीर्वाद आप पर, भोजन खूब बनाते हो,
दुनिया में है कितने भूखे, ये कैसे भूल जाते हो l
मैंने जो ले लिया श्रीखंड में स्नान, तो क्यों चिल्लाते हो जी,
अपना बचा खुचा, सुबह दोपहर शाम, रोज मुझे ही खिलाते हो जी l
‘High Diabetese’ का मरीज़ हूँ, लेकिन,
खुश हूँ श्रीखंड की लालच ने बचा लिया,
क्या होता मेरा जो दाल में होता नहा लिया l
हाटकेश्वर बाबा के इस प्रसाद पर तो लिखा था मेरा नाम जी,
कुत्ता हुआ तो क्या हुआ, मै नागरवारा का निवासी, मै भी हूँ यजमान जी l
श्रीखंड को किया विसर्जित, अब प्रश्न खड़ा महान जी,
तब अन्नपुर्णा के सपूतो को आया 'दान्पुरवाला' का ध्यान जी l
'दान्पुरवाला' बना देव दूत,
दिया भक्तों को जीवनदान जी l
क्या 'गुरु' क्या 'किरीट', क्या ‘हेमंत’, क्या ‘गंगा’, क्या ‘गोल्डी’,
सबने जम के किया श्रीखंड का रसपान जी l
केसर युक्त श्रीखंड खाया, न खाया श्वानयुक्त पकवान जी,
पाया महाप्रसाद, आई तृप्ति, आई जान में जान जी l
भगवन, अगले जनम में फिर नागर दीजो बनाय,
न हो, कम से कम, एसो कुतरो जरूर दीजो बनाय l
आज भी वह कुत्ता गाथा अपनी गाता है,
नागरवारा में जाओ, अपने मित्रों को बताता है l
जहाँ नित नए पकवान बनाते जी,
मंदी आए या INFLATION, जशन रोज मनाते जी l
अच्छे हो या दिन बुरे, ज़िन्दगी रोज सजायेगा,
कहत ‘रोहित कविराय’,
कुत्ता गिरे या SENSEX, नागर तो वशेक खायेगा l

नागर तो वशेक खायेगा, नागर तो वशेक खायेगा lI

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